जाने वाले ज़रा होशियार
यह कहानी मेरी मानसिक संतान है, जाहिर है जान सी प्यारी है।
धर्म और भक्ति की ओट लेकर जो मौजमस्ती चलती है, मौजमस्ती में श्रद्धा नहीं बल्कि शक्ति व मद प्रदर्शन होता है, गुंडई का नंगा नाच होता है, वह सब इस कथा में है।
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