Quotes by Dr Musafir Baitha in Bitesapp read free

Dr Musafir Baitha

Dr Musafir Baitha Matrubharti Verified

@musafirbaitha
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फ़ेसबुक पर पिता दिवस
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कोरोना की तरह फैलकर
बीत गया पिता दिवस
साथ इसके
फ़ेसबुक पर पिताई रस्मी हुंआ हुंआ भी थम गया

शुक्र है कि इस वायरस का जीवन चक्र
तय था चौबीस घण्टे मात्र का
कोरोना की तरह बेमियादी नहीं रहना था इसका प्रकोप
वरना इस हुंआ हुंआ के शब्दातंक से
गहरे सहम सिकुड़ गया था मैं

पिता दिवस पर
जिस फेसबुकवासी ने अपने पिता को याद न किया
जिस पिता को उसकी संतानों ने
फ़ेसबुक पर न टांका
न आरती वंदन किया
समझो वह कोरोना काल की
इक्कीसवीं सदी के गिर्द जनमा मरा तो मगर
जनम उसका यह अकारथ गया
उसकी मरी अथवा साबुत आत्मा अतृप्त आकुल हो तड़प रही है!

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घूर

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गांवों में

शहराती गांवपंथियों के बीच में

घूर लग जाता है

सबेरे-सकाल

सूरज उगकर भी

नहीं उगता या उगता है देर से

अक्सर इन कुहासा भरे शीत दिवसों में


जिंदा घूरे को

शीत के सांघातिक संघनन के

अनुपात में कम या अधिक

खिंचना होता है इस दरम्यान


भले हो अन्न का अकाल

जुटाना बाक़ी हो दो जून की रोटी

इस भोर से उगे दिन को

अपना दिन बनाने के लिये

अपना दीन कम से कम

एक दिन के लिए छांटने के लिए

ख़ुद और परिवार के लिए

घूर के लिए जुगाड़ा जा चुका होता है पर्याप्त

राशन-पानी पिछले दिनों ही


घर और बाहर

टोलेमुहल्ले से

घूर के गिर्द जो बना घेरा होता है दूरे पर

स्त्री पुरुष

बच्चे युवा अधेड़ और वृद्ध का

हर लिंग-उम्र को समेटे

आग से ताप और ऊर्जा पाने के लिए होता है

जबकि बनना इस घेरे का

गँवई संबंधों में बची ऊष्मा का

सुबूत होता है


कहिये

भूत से संभलती आई ऊष्मा

बचती संवरती दिखती है जिनकी बदौलत

घूरा भी वह एक दौलत है!

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पटना शहर से उत्तर गंगा नदी के पार उसकी गोद में बसे गरीब लोग जो छोटी छोटी झोपड़ियों में रहते हैं और नौकाचालन तथा खेती किसानी कर अपनी जीविका चलाते हैं, उनके दरवाजे पर चारे काटने की मशीन है जिसे मैं आजमा कर देख रहा हूँ....

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जाने वाले ज़रा होशियार

यह कहानी मेरी मानसिक संतान है, जाहिर है जान सी प्यारी है।
धर्म और भक्ति की ओट लेकर जो मौजमस्ती चलती है, मौजमस्ती में श्रद्धा नहीं बल्कि शक्ति व मद प्रदर्शन होता है, गुंडई का नंगा नाच होता है, वह सब इस कथा में है।
https://www.matrubharti.com/book/12776/

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