नाराज़ दिल , फिर से बही मंजिल
पहला पड़ाव था, वो सपनों का सफर,
तू थी करीब, मैं था तेरा हमसफर।
मैंने कहा था, "उस राह पर ना चल,
अंधेरे हैं वहाँ, तेरा होगा बुरा हाल।"
पर तूने ना मानी, मेरी कोई बात,
परवाह ना की, हर दिन हर रात।
वो अजनबी साया, तुझे खींचता रहा,
मेरे दिल का हर टुकड़ा, बिखरता रहा।
देखते ही देखते, तू दूर हो गई,
मेरी हर पुकार, अनसुनी हो गई।
मैंने भी फिर, एक नई राह चुनी,
मिली इक हमदम, कहानी नई बुनी।
वो अजनबी संग, तेरा रिश्ता बना,
मेरी दुनिया में, इक नया रंग भरा।
दिन बीते, महीने ढले, साल गुजरे,
हम दोनों अपनी दुनिया में सँवरते।
पर वक़्त की करवट, अजीब थी बड़ी,
टूटी वो दुनिया, जो थी हर पल खड़ी।
ना वो साथ रहा, ना वो कसमें रहीं,
तेरी आँखों में फिर, उदासी वही।
और इधर भी, कहानी कुछ ऐसी हुई,
मेरी भी राहें, अकेली सी हुईं।
टूट गए रिश्ते, वादे वो सारे,
फिर वही दिल, जो कभी थे हमारे।
तब मिली वो निगाहें, जिनसे थी शिकायत,
अधूरी कहानियाँ, अधूरी इबादत।
दोनों के दिल में, था दर्द पुराना,
लगा कि फिर से, मिल गया ठिकाना।
रूठें-मनें, फिर एक हुए हम,
वही पुराने रास्ते, वही पुराने गम।
सीखा था सबक, तन्हाई के साथ,
शायद यही थी, हमारी हर बात।
नाराज़ दिल, फिर से वही मंज़िल,
रिश्तों की कश्ती, हुई फिर हासिल।
शायद प्यार वही है, जो लौट कर आए,
सारी गलतियाँ भूल, हमें अपनाए।