Hindi Quote in Poem by Deepak Bundela Arymoulik

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जो आया मुझे पढ़कर चला गया,
कोई दो लफ़्ज़ लिखकर चला गया,
कोई पन्ने मोड़कर चला गया,
पर जो भी आया — मुझे पूरा न पढ़ सका।

मैं किताब था…
ज़िंदगी के ख़ामोश शेल्फ़ पर रखा,
धूप-छाँव से स्याही धुँधली हुई,
मगर अर्थ अब भी ज़िंदा था।

किसी ने शीर्षक देखा, आगे न बढ़ा,
किसी ने प्रस्तावना में ही दम तोड़ दिया,
किसी को मेरा कवर भाया बहुत,
अंदर के फ़साने ने किसी को रुलाया नहीं।

जो आया, अपने मतलब की पंक्तियाँ चुनी,
बाक़ी अध्यायों को अनकहा छोड़ दिया,
किसी ने मुझे कहानी समझ पढ़ा,
किसी ने मुझे बोझ समझ छोड़ दिया।

मैं हर मोड़ पर एक सच छुपाए था,
हर अध्याय में एक सवाल सोया था,
मगर जो भी पढ़ने बैठा था,
वो ख़ुद की किताब में खोया था।

काश कोई ऐसा भी आया होता,
जो मेरे हर पन्ने से गुज़रता,
मेरी ख़ामोशी के अर्थ पढ़ता,
मेरे टूटे हर्फ़ों को सहेजता।

पर अब भी मैं वहीं रखा हूँ,
उसी धूल, उसी उम्मीद के साथ,
कि कोई तो आएगा एक दिन,
मुझे पूरा पढ़ेगा… आख़िरी पन्ने तक।

आर्यमौलिक

Hindi Poem by Deepak Bundela Arymoulik : 112008443
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