ए मोहब्बत, तेरे सिवा इस दुनिया में क्या देखूँ,
इश्क़ देखूँ तेरी आँखों में, या दुनिया की नफ़रत देखूँ।
तेरे होने से हर इक रंग हसीन हो जाता है,
तेरे बिन शहर-शहर दिल मेरा यतीम हो जाता है।
इश्क़ की बारिश में भीगूँ, तो रूह नहाती है,
नफ़रत की धूप में जलूँ, तो साँस भी थक जाती है।
तू हो तो हर ज़ख़्म भी इबादत बन जाता है,
तू जो न हो, तो हर सच भी सज़ा बन जाता है।
दुनिया के मेले में सब अपने-अपने खेल रचाते हैं,
कुछ दिल बेचते हैं सस्ते में, कुछ चेहरे सजाते हैं।
मैं तुझको चुनूँ हर हाल में, हर मोड़, हर सफ़र में,
इश्क़ ही मेरा मज़हब है, अपनी हर खबर में।
ए मोहब्बत, नफ़रत का बोझ उठाऊँ कैसे,
तेरी राह छोड़ किसी और राह जाऊँ कैसे।
तेरे सिवा अब कुछ भी मुझे भाता नहीं,
इश्क़ देखूँ तो ज़िंदा हूँ, वरना ये दुनिया ही दुनिया,
— मुझे बसाती नहीं।
Arymoulik