ऐसे न नज़र मिलाएँ कि दिल बेक़रार हो जाए,
ख़ामोशियाँ भी टूटें, इज़हार ही इज़हार हो जाए।
ये सादगी, ये शोख़ी, ये भोलापन आपका,
इकरार की तमन्ना में हर बार वार हो जाए।
पलकों के इन हिजाबों में क्या राज़ है छुपा,
एक हल्की सी हँसी और जीना दुश्वार हो जाए।
ऐसे न नज़र मिलाएँ कि दिल बेक़रार हो जाए,
ख़ामोशियाँ भी टूटें, इज़हार ही इज़हार हो जाए।
महफ़िल में यूँ तो लाखों हैं मगर,
इक आप ही पे आके, ये दिल निसार हो जाए।
कहने को और भी हैं अफ़साने ज़िंदगी में,
बस आपकी ही बातों से ये सफ़र गुलज़ार हो जाए।
ऐसे न नज़र मिलाएँ कि दिल बेक़रार हो जाए,
ख़ामोशियाँ भी टूटें, इज़हार ही इज़हार हो जाए।