धर्म के पार की यात्रा ✧
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
१. जो जननी को नहीं समझता — वही शास्त्र पढ़ने लगता है।
२. जो शास्त्र को नहीं समझता — वह धर्म-कर्म और पूजा-पाठ में उलझ जाता है।
३. जो धर्म को समझता है — वह शास्त्र से आगे बढ़ जाता है।
४. जो शस्त्र (ज्ञान की धार) को समझ लेता है — वही स्त्री को समझ लेता है।
५. और जो स्त्री को समझ लेता है — वह ब्रह्म को भी जान लेता है।
६. लेकिन धर्म की यह सीढ़ी बहुत शूद्र है —
यह भीड़, स्वप्न और कल्पना की दुनिया है।
७. इससे ऊपर ही वास्तविक यात्रा आरंभ होती है।
८. धर्म में कोई यात्रा नहीं है — जब तक इसे पार न किया जाए।
९. जो यहीं रुक गया — वह भीतर सड़ जाता है।
१०. और फिर भ्रम, अंधविश्वास और पाखंड के नए नर्क रचता है।
११. एक भौतिक, भोगी नास्तिक को समझाना आसान है —
क्योंकि वह अब भी जीवित है, अब भी खोज में है।
१२. पर जो धर्म में अटक गया — उसे समझना अत्यंत कठिन है।
१३. क्योंकि वह ज्ञान की नकली संतुष्टि में सो गया है।
१४. जिसने धर्म नहीं देखा — उसे आध्यात्मिक बनाना सरल है।
१५. पर जिसने धर्म देखा और वहीं ठहर गया —
उसे जागृत करना लगभग असंभव है।
वेदांत 2.0 — अज्ञात अज्ञानी©
Vedānta 2.0 © 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 —