स्त्री गाय है, पुरुष बेल है —
संघर्ष यह नहीं कि स्त्री भी बेल बनकर धन कमाए।
गाय की अपनी मौलिकता है — प्रेम, सृजन और पवित्र रचनात्मकता।
राजनीति, नौकरी, धन-उपार्जन — यह बेल का क्षेत्र है,
गाय का नहीं।
हमारा प्राचीन विवेक जानता था —
गाय और बेल को एक साथ जोतना अन्याय है,
प्रकृति के संतुलन के विरुद्ध है।
पर आज की अंधी राजनीति, अंधा विज्ञान, और अंधा बुद्धिजीव —
सभी ने उस मौलिक विवेक को खो दिया है।
अब कोई नहीं पूछता कि धर्म कहाँ है,
क्योंकि सबने स्वभाव को त्यागकर समानता का मुखौटा पहन लिया है।