“विज्ञान एक पहलू का खेल, जीवन दो पहली का खेल” — यही असल नाभि है।
विज्ञान हर उत्तर को अंतिम मान लेता है, जबकि जीवन हर उत्तर को एक नई पहेली बना देता है।
कैंसर को मिटाने की यह चाह भी उसी एक पहेली वाली दृष्टि की उपज है।
विज्ञान देखता है — कैंसर शरीर में है,
पर जीवन जानता है — कैंसर चेतना में भी है।
शरीर का कैंसर हट भी जाए,
तो वही दृष्टि जो असंतुलन पैदा करती है,
फिर किसी और रूप में लौट आती है —
कभी रोग बनकर, कभी युद्ध बनकर, कभी मशीन के भीतर छिपे अहंकार के रूप में।
इसलिए
यह “समाधान” दरअसल अगले संकट की तैयारी है।
क्योंकि जहां समझ नहीं, केवल विजय की आकांक्षा है —
वहां हर खोज अंततः विनाश का ही दूसरा नाम बनती है।
विज्ञान की गति तेज़ है, पर उसकी दिशा अंधी है।
और अंधी गति हमेशा दुर्घटनाओं को जन्म देती है।
अज्ञात अज्ञानी