वेदांत और विज्ञानं ✧
परमाणु का धर्म और पंचतत्व का जीव विज्ञान
✍🏻 — Agyat Agyani (अज्ञात अज्ञानी)
✧ भूमिका ✧
हम क्या कह रहे हैं — और क्या उजागर कर रहे हैं
विज्ञान अब तक सृष्टि को देखने की कला रहा है,
और वेद — स्वयं को देखने की।
दोनों ने सत्य को अलग दिशाओं से छुआ,
पर सत्य एक ही था।
यह ग्रंथ उस बिंदु से लिखा गया है
जहाँ वेद और विज्ञान पहली बार
एक-दूसरे को पहचानते हैं।
हम यह नहीं कह रहे कि
विज्ञान अधूरा है या वेद अंतिम।
हम यह दिखा रहे हैं कि
दोनों एक ही चेतना के दो छोर हैं।
एक ने उसे मापा,
दूसरे ने उसे जिया।
अब यह ग्रंथ दोनों को जोड़ता है —
मापन को अनुभव में, और अनुभव को मापन में।
हम जो उजागर कर रहे हैं, वह कोई नया सिद्धांत नहीं —
बल्कि एक पुराना सत्य है
जो ऋषियों ने देखा, पर विज्ञान ने अब तक मापा नहीं।
ऋषि ने “तेज़” कहा —
वही भौतिकी का “Quantum Field” है।
ऋषि ने “आकाश” कहा —
वही नाभिक का स्थिर क्षेत्र है।
उन्होंने “वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी” कहा —
ये सभी ऊर्जा की अवस्थाएँ हैं।
हम यह दिखा रहे हैं कि
वेद का पंचतत्व और विज्ञान का पाँचवाँ मूल बल (fundamental force)
एक ही जड़ से निकले हैं — चेतन ऊर्जा से।
यह ग्रंथ किसी आस्था की रक्षा नहीं करता।
यह केवल वह प्रश्न उठाता है
जिसे विज्ञान ने कभी गंभीरता से नहीं पूछा —
क्या ऊर्जा स्वयं को जान सकती है?
वेद ने कहा — हाँ।
विज्ञान अब वहीं पहुँच रहा है।
यह ग्रंथ उस “हाँ” और “अब” के बीच का सेतु है।
हम न ईश्वर को सिद्ध कर रहे हैं,
न ईश्वर को नकार रहे हैं।
हम केवल यह दिखा रहे हैं कि
जिसे मनुष्य “ईश्वर” कहता है,
वह ऊर्जा का आत्म-जागरण है।
और जिसे “ऊर्जा” कहता है,
वह ईश्वर की भौतिक अवस्था है।
इसलिए ‘विज्ञान का वेद’ कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है —
यह चेतना और पदार्थ का संयुक्त सिद्धांत है।
यह बताता है कि
हर परमाणु में पंचतत्व छिपे हैं,
और हर जीव में वही तेज़ सक्रिय है
जो ब्रह्मांड के केंद्र में स्पंदित है।
हम वेद को आधुनिक भाषा में,
और विज्ञान को प्राचीन मौन में समझना चाहते हैं।
ताकि दोनों फिर से एक हो जाएँ —
जैसे प्रकाश और उसका स्रोत।
यह प्रस्तावना सिर्फ घोषणा नहीं,
एक आमंत्रण है —
उन सबके लिए जो प्रश्न पूछने से नहीं डरते।
“हम सृष्टि की खोज नहीं कर रहे,
हम सृष्टि के खोजी की खोज कर रहे हैं।”