छोटे से घर की छोटी सी मुट्ठी में,
सपनों का उजाला सहेज लिया।
दीवारों की दरारों से झांकती उम्मीद,
फिर रोशनी की राह खोज लिया।
माँ ने आंचल में समेटे दुख सारे,
नन्हीं बिटिया के हाथों दीप जलाए।
आंसुओं में भी मुस्कान का रंग घोला,
दीपावली के दीप उसने यूँ सजाए।
हर लौ में छुपा है किसी दिल का अरमान,
हर दीपक में झिलमिलाता है जीवन का गान।
अंधेरों की भीड़ में उम्मीद जला दें,
दीपावली का ये पर्व बस प्यार बांटता चले।
आर्यमौलिक