स्नेहिल नमस्कार मित्रो
पता नहीं, कहाँ, कहाँ खो गई हैं रचनाएँ😒
पिछले वर्ष एफ़बी महाराज हैक हो गए थे, बहुत सारा मैटर ग़ायब...
अब जहाँ कहीं से कुछ पुराना मिल रहा है, सहेजने का टूटा फूटा प्रयास..
उसी खोज में प्राप्त एक पुरानी रचना।
क्यूँ????
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ये मेरा मन सुबह सुबह ,है आज क्यूँ डरा डरा,
क्यूँ आसमाँ से झाँकता है मन मेरा ज़रा ज़रा।
ये पत्थरों के दरमियाँ घुटे घुटे सवाल हैं,
ज़मीं पे चाँद उग रहा ,ये रेशमी ख़याल हैं।
कडक रही हैं बिजलियाँ,यहाँ सभी धुआँ धुआँ,
ये रास्तों के दरमियाँ खुला हुआ कुआँ कुआँ।
मुहब्बतों के रास्ते,यहाँ हैं किसके वास्ते,
सभी की आँख बंद हैं, सभी हैं बंद रास्ते।
न बात कर तू इश्क की, ये डूबने की राह है,
जो डूब जाए इसमें फिर न आगे कोई चाह है।
ये मन मेरा सुबह सुबह...
पिटारों में क्यूँ बंद हैं,ये बिन तराशे छंद हैं
मलाल ही मलाल है ,ये कागज़ी ख्याल हैं
सभी शरीक दौड़ में ,सभी हैं लक्ष्य के बिना
ये मन मेरा सुबह सुबह....
सलीब पे टंगी हुई ,है प्रश्न याचिका बड़ी
यहाँ है दौड़ लग रही ,टूटती कड़ी कड़ी
आँसुओं से सींच लीं सभी कवारी क्यारियाँ
उत्तरों की खोज में सभी की गुम है दास्ताँ
ये मन मेरा सुबह सुबह....
क्यूँ आसमाँ से झाँकता है मन मेरा ज़रा ज़रा....
ये मन मेरा.....
डॉ. प्रणव भारती
अहमदाबाद