“कम चीज़ों के साथ जीना” अगर भीतर की सहजता से उपजे — तब वह संपदा है।
पर अगर यह किसी आदर्श या नियम से अपनाया गया संयम है, तब यह भी एक बंधन बन जाता है।
जो भीतर भरा है, वही बाहर मांग बनकर प्रकट होता है।
जरूरत कोई दोष नहीं, वह तो विकास का संकेत है।
दमन से न तो बुद्धि बढ़ती है, न आत्मा शांत होती है — बस द्वंद बढ़ता है।
जीवन नियम और नियमहीनता, दोनों के बीच झूलता हुआ नाच है।
नियम व्यवहार का ढाँचा हैं — ताकि जीवन बिखरे नहीं।
और नियमहीनता आत्मा की उड़ान है — ताकि जीवन जम न जाए।
जो इन दोनों को साथ लेकर चल सके, वही सच में जीना सीखता है।
बाकी सब या तो कठोर संत हैं, या खोए हुए भोगी।