अस्तित्व बिना नियंत्रण चलता है —
जैसे हवा चलती है,
जैसे दिल धड़कता है,
जैसे फूल बिना योजना के खिलता है।
धर्म कहता है —
मन को बाँधो, रोक लो, साध लो।
पर मन तो ठहरता ही कहाँ है?
जिसे बाँधने चले, वही तो लहर है —
उसके न होने में ही सागर शांत है।
नियंत्रण का मतलब है डर,
और डर हमेशा अलगाव से जन्मता है।
जहाँ “मैं” और “मन” दो हैं —
वहाँ संघर्ष है।
जहाँ “मैं” ही नहीं बचा —
वहाँ सब सहज है।
जब मन नहीं होता,
जीवन सरल हो जाता है —
बिलकुल एक बच्चे की तरह,
जो जानता नहीं
पर जीता सब जानकर।
🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲