💭 विचार — “पहले तुम स्त्री बनो”
पहले तुम स्त्री बनो,
फिर चाहे प्रेमिका बनना, पत्नी बनना या देवी बन जाना।
क्योंकि जब तक तुम स्त्री के दुख, संघर्ष, और मौन की भाषा नहीं समझती,
तब तक तुम्हारा प्रेम भी अधूरा रहेगा।
आज की सबसे बड़ी विडंबना यही है —
स्त्री ही स्त्री की सबसे बड़ी शत्रु बन बैठी है।
वो दूसरी स्त्री के आँसू नहीं देखती,
बस उसकी मुस्कान से जल उठती है।
किसी की मजबूरी को मज़ाक बना देती है,
और किसी के दर्द को “ड्रामा” कहकर टाल देती है।
कभी किसी की जगह खुद को रखकर देखो —
कितना कठिन होता है मौन रहकर जीना,
कितना पीड़ादायक होता है सहना और मुस्कुराना एक साथ।
स्त्री अगर स्त्री को समझने लगे,
तो यह दुनिया और कोमल हो जाएगी।
फिर किसी को प्रेमिका या पत्नी कहलाने से पहले
मानव और संवेदना की पहचान नहीं खोनी पड़ेगी।
पहले तुम स्त्री बनो —
क्योंकि स्त्री होना ही सबसे बड़ा धर्म है,
सबसे बड़ी साधना,
और सबसे गहरा प्रेम।
इस विचार का मतलब यह नहीं की पत्नी की जगह छीन ली जाए
प्रेमिका अपने पति की patni बनो,
Kisi dusre ki Pati ki Premika nhi bano