मैं
मैंने बताना तो चाहा,
तुमने सुना क्यों नहीं?
मैंने जताना तो चाहा,
तुम्हें यक़ी हुआ ही नहीं?
तुम्हें इंतज़ार रहा,
मेरे पलट जाने का।
मैं सोचती रह गयी,
तुमने पुकारा क्यों नहीं?
पल बीतें, मौसम बदले,
वक़्त ठहरा ही नही।
बदलती रहीं तारीखें,
हम बदले क्यों नहीं?
छोड़ देते काश,
अपने "मैं" को हम।
हम सोचते ही रहे,
हमसे हुआ क्यों नही?
मधु शलिनी वर्मा