जब ईश्वर, आत्मा, और विज्ञान एक ही धरातल पर आ जाएँ —
तो न किसी को विश्वास बेचने की ज़रूरत रहेगी,
न किसी को डर दिखाने की।
क्योंकि तब ईश्वर कोई सत्ता नहीं,
एक सिद्ध नियम होगा —
जैसे गुरुत्वाकर्षण,
पर भीतर की दिशा में।
आत्मा तब रहस्य नहीं रहेगी,
बल्कि अनुभव की स्वाभाविकता होगी —
हर सांस में उपस्थित, हर विचार में जागरूक।
और विज्ञान जब इस सत्य को छू लेगा,
तो प्रयोग और प्रार्थना एक ही बात हो जाएगी।
फिर कोई पाखंडी नहीं रह सकता —
क्योंकि झूठ केवल वहीं टिकता है
जहाँ मनुष्य भीतर और बाहर दो बोलियाँ बोलता है।
सहजता का यही अर्थ है —
जीवन एक दिशा में बह रहा हो,
बिना भय, बिना प्रदर्शन।
तब धर्म नहीं चाहिए,
और अधर्म का प्रश्न भी नहीं उठता।
अज्ञात अज्ञानी