उस रात मैं भी वहाँ था
मैं उस रात किनारे पर था।
पत्रकार मावी ने जिस आवाज़ का ज़िक्र किया है, मैंने भी उसे सुना था।
लहरें किनारे से टकरा रही थीं, लेकिन हवा में एक सुर था — किसी औरत के गीत जैसा, दुखभरा और दूर।
लोग बोले, "हवा का खेल है", पर मैं कसम खाता हूँ, वो आवाज़ सच थी।
समंदर की सतह पर एक रोशनी चमकी।
जैसे पानी ने आग को छुपा रखा हो।
शायद वो अफ़साना था, शायद सच्चाई।
पर उस पल, सब चुप हो गए... क्योंकि समंदर भी सुन रहा था।