बधाई का खेल और मौन की स्वतंत्रता
लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं,
जैसे किसी की जीत हुई हो।
पर बधाई तो अहंकार का खेल है —
किसी का ऊँचा, किसी का नीचा।
सच में जब अहंकार गिर जाता है,
तो जीत–हार दोनों मिट जाते हैं।
वहाँ न बधाई बचती है,
न तुलना — केवल मौन राम प्रेम स्वतंत्रता।
- Agyat Agyani