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अमर तत्व

अमर तत्व (Immortal Principle) भारतीय दार्शनिक और आध्यात्मिक चिंतन में प्रयुक्त एक अवधारणा है। इसका मूल दावा यह है कि शरीर, मूर्ति और शास्त्र नष्ट हो सकते हैं, परंतु ज्ञान, वाणी, अहंकार और भाव जैसी तरंगें आकाश तत्व में अमर रहती हैं। यह विचार ऊर्जा संरक्षण के वैज्ञानिक सिद्धांत, मानवीय अनुभव, और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ता है।


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सिद्धांत

1. ऊर्जा का विज्ञान

भौतिकी का मूल नियम है कि ऊर्जा न तो बनाई जा सकती है और न ही नष्ट की जा सकती है; यह केवल रूप बदलती है। बोलना, गाना या सोचना भी ध्वनि एवं मानसिक कंपन है। ये तरंगें हवा और आकाश में फैलती हैं और उनकी ऊर्जा सूक्ष्म रूप में दर्ज रहती है। इससे संकेत मिलता है कि वाणी या कंपन पूरी तरह नष्ट नहीं होते।

2. शब्द और स्मृति

रेडियो, टेलीविज़न और मोबाइल संचार आकाशीय तरंगों के कारण संभव है। मानव द्वारा उत्पन्न ध्वनि तरंगें हज़ारों किलोमीटर दूर तक ग्रहण की जा सकती हैं। इससे यह विचार उत्पन्न हुआ कि आकाश तत्व केवल ध्वनि ही नहीं बल्कि उसके सूक्ष्म "निशान" को भी संचित करता है। इसी कारण कहा जाता है कि पुरानी सभ्यताओं की तरंगें आज भी सूक्ष्म जगत में मौजूद हैं।

3. अनुभव का प्रमाण

आध्यात्मिक परंपराओं में यह अनुभवजन्य दावा किया जाता है कि कबीर, बुद्ध या अन्य ऋषियों की चेतना आज भी ध्यान एवं समाधि में सुनी जा सकती है। साधकों के अनुसार, आकाश में उनकी चेतना का कंपन अभी भी विद्यमान है, और पात्रता अनुसार व्यक्ति उन तरंगों से जुड़ सकता है।

4. सांस्कृतिक प्रमाण

इतिहास में मंदिर नष्ट हुए, ग्रंथ जले, और भाषाएँ लुप्त हुईं; फिर भी कई पंक्तियाँ, कहावतें और विचार आज तक जीवित हैं। इसे सांस्कृतिक प्रमाण माना जाता है कि वे विचार और भाव सामूहिक चेतना और आकाश तत्व दोनों में तरंग बनकर टिके रहे।

5. अहंकार और ज्ञान दोनों अमर

आकाश तत्व निष्पक्ष है। जैसे रेडियो में संगीत और शोर दोनों दर्ज होते हैं, वैसे ही आकाश में ज्ञान और अहंकार दोनों कंपन रहते हैं। साधक की पात्रता यह तय करती है कि कौन-सी तरंग उसे प्रभावित करेगी। इसी आधार पर कहा जाता है कि राम भी अमर हैं (ज्ञान की तरंग) और रावण भी अमर हैं (अहंकार की तरंग)।

6. गुरु का रूप

आकाश तत्व को "गुरु" भी कहा गया है, क्योंकि यह बिना पक्षपात किए व्यक्ति को वही दिखाता है जिसके लिए वह तैयार है। भीतर प्यास हो तो ज्ञान की तरंग आकर्षित होती है, भीतर वासना हो तो उसी प्रकार की तरंग खिंच आती है।


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निष्कर्ष

इस सिद्धांत के अनुसार, अमरता शरीर की नहीं बल्कि तरंग की है। तरंग नष्ट नहीं होती, केवल उसका ग्रहणकर्ता बदलता है। जो ऋषि-मुनि, बुद्ध, राम, कृष्ण और कबीर ने जिया या कहा, वह आज भी आकाश तत्व में दर्ज है। यही "अमर तत्व" है — आकाश में अंकित चेतना की स्मृति।

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