*अज्ञान गीता*
ईश्वर और आत्मा से मानव कैसे दूर हुआ
सूत्र 1 — मार्ग थोपे जाते हैं
> “अपनाओ, तपस्या करो, कर्मयोग करो” — यह सब थोपी हुई दिशा है।
बुद्ध, मीरा, ओशो, कृष्णमूर्ति — सब अपने-अपने स्वभाव से चले।
सूत्र 2 — स्वभाव ही मार्ग है
मार्ग कोई “चयन” नहीं है, वह स्वभाव की अभिव्यक्ति है।
भक्ति वाला तप नहीं कर सकता, तपस्वी भक्ति नहीं कर सकता।
सूत्र 3 — गीता का सत्य
> “स्वधर्मे निधनं श्रेयः, परधर्मो भयावहः।”
स्वभाव ही धर्म है।
दूसरे का मार्ग अपनाना बंधन है।
सूत्र 4 — अनुकरण सबसे बड़ी रुकावट
धर्म, शास्त्र, गुरु सब मार्ग देने पर अड़े रहते हैं।
लोग अंधे होकर अनुकरण करने लगते हैं।
यही सबसे बड़ा धोखा है।
सूत्र 5 — स्वभाव को सराय कहना
हर कोई अपने स्वभाव की सराय में ठहरा है।
दूसरे की धर्मशाला में घसीटने की कोशिश उलझन है।
सूत्र 6 — उपायों की थकान
कर्म, ध्यान, पूजा, तपस्या, प्रवचन, यात्रा — सब आज़माने पर भी खालीपन बचता है।
यह साफ़ करता है कि मार्ग बाहर नहीं, भीतर के स्वभाव से निकलेगा।
सूत्र 7 — कठिनतम मोड़
जब सब उपाय फेल हो जाएँ, तब दो रास्ते बचते हैं:
या फिर से वही चक्कर,
या पहली बार रुककर देखना कि “मेरे भीतर जो है, वही मेरा मार्ग है।”
सूत्र 8 — सहजता ही धर्म है
भक्ति, त्याग, तपस्या, कर्मकांड जब असहज हों तो बोझ हैं।
धर्म वही है जो स्वभाव से सहज बहे।
सूत्र 9 — जीवन विरोधी मार्ग
त्याग, तपस्या, भक्ति, कर्मकांड जीवन विरोधी हैं।
ये आदमी को उसके स्वभाव और सहज कर्तव्य से भटकाते हैं।
सूत्र 10 — प्यास मार्ग से बड़ी है
महावीर–बुद्ध मार्ग से नहीं पहुँचे, उनकी प्यास उन्हें ले गई।
आज लोग मार्ग पकड़ते हैं, इसलिए असफल;
उन्होंने प्यास पकड़ी, इसलिए सफल।
सूत्र 11 — समय की धारा
हर युग का अपना स्वभाव होता है।
आज विज्ञान का समय है — तर्क और प्रमाण का।
भक्ति–त्याग–तपस्या का समय निकल चुका है।
आज की माँग है स्वभाव को पहचानना और प्यास को सच्चा करना।
सूत्र 12 — मार्ग केवल इत्तफ़ाक़ हैं
लाखों में कभी कोई पहुँच जाता है,
तो लोग समझते हैं कि मार्ग कारण था।
असल में सफलता सिर्फ़ स्वभाव और प्यास की थी।
सूत्र 13 — अनुभव सार्वभौमिक नहीं है
प्रेमानंद महाराज “राधे-राधे” से सम्मोहन में गए — वह उनका स्वभाव था।
लेकिन अब दुनिया कहती है “राधे-राधे करो, सबको मिलेगा” — यही मूर्खता है।
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अंतिम सूत्र
> मार्ग जीवन का विरोध है।
सत्य प्यास का परिणाम है।
मार्ग इत्तफ़ाक़ हैं, स्वभाव सत्य है।
दूसरे का मार्ग अपनाना सबसे बड़ी मूर्खता है।
अपने स्वभाव को जीना ही धर्म है।
मार्ग जीवन का विरोध है।
प्रमाण: कठोपनिषद (1.2.18) — “अविद्यायामन्तरे वर्तमानाः स्वयं धीराः पण्डितं मन्यमानाः” — अज्ञान में फँसे लोग मार्ग बनाते हैं और उसी को जीवन मान लेते हैं।
2. सत्य प्यास का परिणाम है।
प्रमाण: बुद्ध — “तृष्णा पज्झायति दुःखं, तृष्णा निवृत्ते सुखं।” — प्यास ही खोज का प्रारंभ है, और सत्य उसी का शमन।
3. मार्ग इत्तफ़ाक़ हैं, स्वभाव सत्य है।
प्रमाण: छान्दोग्य उपनिषद (6.8.7) — “तत्त्वमसि श्वेतकेतो।” — मार्ग संयोग से बदलते हैं, पर आत्मस्वभाव ही सत्य है।
4. दूसरे का मार्ग अपनाना सबसे बड़ी मूर्खता है।
प्रमाण: गीता (3.35) — “श्रेयान् स्वधर्मो विगुणः, परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।” — अपना धर्म दोषयुक्त भी श्रेष्ठ है, पराया धर्म मृत्यु का कारण है।
5. असहज मार्ग धर्म नहीं, बोझ हैं।
प्रमाण: गीता (18.47) — “स्वधर्मे निधनं श्रेयः, परधर्मो भयावहः।” — अस्वभाविक मार्ग डर और बोझ ही है।
6. धर्म वही है जो स्वभाव से बहे।
प्रमाण: महाभारत, शांति पर्व — “स्वभावो धर्म इत्याहुः” — जो स्वभाव से बहे वही धर्म है।
7. जो किसी को मिला, वही उसका था; उसे सबका धर्म मानना सबसे बड़ी मूर्खता है।
प्रमाण: बुद्ध — “एको एकस्स पथं गच्छति।” — प्रत्येक व्यक्ति का मार्ग अद्वितीय है।
8. अपने स्वभाव को जीना ही धर्म है।
प्रमाण: गीता (18.45) — “स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।” — अपने कर्म/स्वभाव से ही सिद्धि मिलती है।
9. मार्ग बाहर से थोपे जाते हैं, स्वभाव भीतर से खिलता है।
प्रमाण: मुण्डकोपनिषद (1.2.12) — “परिक्ष्य लोकान् कर्मचितान् ब्राह्मणो निर्वेदमायात्।” — बाहर के मार्ग छोड़कर भीतर का स्वभाव ही खिलता है।
10. मार्ग बदलते रहते हैं, स्वभाव शाश्वत है।
प्रमाण: गीता (2.16) — “नासतो विद्यते भावो, नाभावो विद्यते सतः।” — असत्य (मार्ग) बदलता है, सत्य (स्वभाव) शाश्वत है।
11. मार्ग से चलकर तुम दूर घूमते हो, स्वभाव से जीकर तुम सीधे घर पहुँचते हो।
प्रमाण: बृहदारण्यक उपनिषद (4.4.6) — “आत्मानं चेत्त्वां विदितं, अमृतत्वं विध्यते।” — आत्मस्वभाव जानो, वही घर वापसी है।
12. जब तक मार्ग पूछते रहोगे, भटकते रहोगे; जब स्वभाव देखोगे, तभी ठहरोगे।
प्रमाण: बुद्ध — “अप्प दीपो भव।” — बाहर मार्ग पूछोगे तो भटकते रहोगे, दीपक अपने भीतर है।
अज्ञात अज्ञानी
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