मेरे लब्ज़ समझो मैं हिंदी हूं
कई शब्दों से जुड़ कर बनी एक भाषा हूं
लहजा मेरा बिल्कुल पवित्र है यहां
कभी हिन्दू ,कभी मुस्लिम सभी धर्मों का करती सम्मान हूं
मैं भेदभाव की जननी नहीं हूं और न मेरा ऐसा संस्कार है
न मैं बांटती हूं लोगों में हीनभावना, मेरे मीठे शब्दों की मिठास यही तो मेरी पहचान है ,,,,,
मैं शर्म नहीं करती जब हिंदी कह कर मेरा कोई मजाक बनाता
मैं तो खुद पर गर्व करती हूं यह सोच कर कि वो इंसान मुझे समझने से पहले ही है डर जाता ,,,,,
मैं बहुत सरल हूं जितना समझोगे उतना प्यार पाओगे
मैं हिंदी हूं शब्दों से मिलकर पंक्ति का निर्माण करती हूं ,
जो रिश्ते में अपनापन लाता है ,,,,,
शर्म करोगे मुझ पर तो खुद का वजूद ही समझ न पाओगे,
बांटो नहीं मुझे गैरों के हिस्सों में, मुझमें ही खुद की पहचान पाओगे,,,,,,,,,
_Manshi K