मनुष्य का जीवन अनेक प्रश्नों से भरा हुआ है। किंतु सब प्रश्न सार्थक नहीं होते। धर्म, समाज और परंपराएँ हमें प्रायः ऐसी कहानियाँ और उपन्यास देती हैं जिनसे प्रश्न जन्म लेते हैं, परंतु उनका जीवन या विज्ञान से कोई सीधा संबंध नहीं होता। ऐसे प्रश्न केवल स्वप्न हैं—कल्पना की उड़ान, न कि सत्य की खोज।
असार प्रश्न
धार्मिक कथाओं या चमत्कारों से उपजे प्रश्न।
अतीत की घटनाओं या भविष्य की कल्पनाओं पर आधारित प्रश्न।
ऐसे प्रश्न जो व्यक्ति के जीवन-विज्ञान से असंबद्ध हों।
इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का परिणाम शून्य ही होता है, क्योंकि वे भटकाव मात्र हैं।
सार्थक प्रश्न
जो मनुष्य के वर्तमान जीवन और अनुभव से जुड़े हों।
जिनका आधार तत्व, कारण और विज्ञान हो।
जिनमें उत्तर व्यवहार और जीवन को गहराई से प्रभावित करे।
तर्क का आधार
सच्चा प्रश्न हमें तत्व रूपी विज्ञान तक ले जाता है। सही प्रश्न नहीं तो सही उत्तर भी संभव नहीं। उत्तरदायी व्यक्ति (चाहे वह गुरु हो, लेखक हो या चिंतक) की जिम्मेदारी है कि वह असार प्रश्नों की बकवास मिटा कर केवल जीवन-संबंधी, वैज्ञानिक और तत्वमूलक प्रश्नों का उत्तर दे।
निष्कर्ष
भूत और भविष्य हमारे बस में नहीं हैं। हमारे हाथ में केवल वर्तमान है, और प्रश्न भी वर्तमान जीवन के गूढ़ सत्य को ही लक्ष्य करना चाहिए। जब प्रश्न तत्व-विज्ञान पर टिके होते हैं, तभी उत्तर भी सार्थक और जीवनोपयोगी होते हैं।