✧ सब कुछ ही ईश्वर है ✧
प्रस्तावना
“ईश्वर है या नहीं है” — यह सवाल ही अधूरा है।
क्योंकि यह हमें दो विकल्पों में बाँध देता है, जबकि सत्य तो तीसरा है —
कि यह पूरा अस्तित्व ही ईश्वर है।
🌱 समझने की बात यह है:
– यदि हम कहते हैं “ईश्वर नहीं है”, तो हम किसी मूर्त या काल्पनिक अवधारणा को नकार रहे हैं।
– यदि हम कहते हैं “ईश्वर है”, तो हम उसे किसी आकाश में बैठी सत्ता मान लेते हैं।
– जबकि सत्य यह है कि सब कुछ ही ईश्वर है।
🔥 पेड़, नदी, सूरज, हवा, जन्म, मृत्यु, प्रेम, पीड़ा — सब उसी ऊर्जा के रूप हैं।
किसी के लिए यह प्रकृति, किसी के लिए सृष्टि का नियम, किसी के लिए अस्तित्व, और किसी के लिए ईश्वर।
इसलिए “ईश्वर है या नहीं है” पर झगड़ना मूर्खता है।
जैसे लहर से पूछो — “समुद्र है या नहीं?”
लहर हंसेगी और कहेगी — “मैं ही समुद्र हूँ।”
👉 यही दृष्टि वेदांत ने कहा — “सर्वं खल्विदं ब्रह्म।”
(जो कुछ है, वही ब्रह्म है।)
✦ सूत्र ✦
✦ सूत्र १
“ईश्वर है या नहीं है” — यह सवाल ही अज्ञान है।
✦ सूत्र २
जब सब कुछ ही अस्तित्व है, तो उसे अलग से “ईश्वर” कहने की जरूरत नहीं।
✦ सूत्र ३
पेड़, नदी, पर्वत, आकाश, मनुष्य — सब उसी एक ऊर्जा के रूप हैं।
✦ सूत्र ४
लहर समुद्र से अलग नहीं, उसी का रूप है।
इसी तरह हम अस्तित्व से अलग नहीं।
✦ सूत्र ५
“ईश्वर होना या न होना” पर झगड़ना वैसा ही है जैसे श्वास पूछे —
“हवा है या नहीं?”
✦ सूत्र ६
वेदांत कहता है — “सर्वं खल्विदं ब्रह्म।”
जो कुछ है, वही ब्रह्म है।
✦ सूत्र ७
ईश्वर बाहर कहीं नहीं बैठा,
वह हमारी आँखों की रोशनी,
कानों की ध्वनि,
हृदय की धड़कन में है।
✦ सूत्र ८
जिसे कोई प्रकृति कहे,
कोई ब्रह्म,
कोई सृष्टि —
वह सब नाम उसी एक सत्ता के हैं।
✍🏻 🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
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