✦ बुद्धि
बुद्धि पहाड़ जैसी है —
स्थिर, भारी, बूढ़ी चट्टानों से बनी।
वह खुद नहीं चलती, उसे रास्ते चाहिए,
नियम चाहिए, मानचित्र चाहिए।
जैसे कोई पहाड़ पर चढ़ने के लिए
पगडंडी बनाता है।
बुद्धि भी नियमों और तर्कों पर ही चलती है।
उसमें गति नहीं, जड़ता है।
✦ हृदय
हृदय नदी जैसा है —
बहता हुआ, जीवंत, अपना मार्ग स्वयं खोजता।
वह कभी रुकता नहीं,
बिना नक्शे के भी रास्ता बना लेता है।
और जब यह बहते-बहते समुद्र से मिलता है,
तो एक विशाल, अनंत,
हमेशा हिलती-जागती गहराई में बदल जाता है।
हृदय कभी स्थिर नहीं रहता,
वह हर लहर में धड़कता है।
✦ संबंध
इसलिए हृदय बुद्धि से बड़ा है।
बुद्धि सीमित है, पहाड़ जैसी,
हृदय असीम है, समुद्र जैसा।
बुद्धि को हमेशा नियम चाहिए,
हृदय को सिर्फ़ बहाव चाहिए।
बुद्धि बूढ़ी है, हृदय हमेशा जवान है।