Hindi Quote in Blog by Agyat Agyani

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पुराण और “लोकप्रिय धर्म” ✧

1. वेद–उपनिषद–गीता का धर्म = आत्मा, ध्यान, सत्य, ब्रह्म, मौन।

यह खोज भीतर की थी।

इसमें मूर्ति, मंदिर, कर्मकांड गौण या लगभग अनुपस्थित थे।

2. पुराणों का धर्म = कथा, चमत्कार, व्रत, दान, मूर्ति, मंदिर।

यह सब जनमानस को बाँधने के लिए लिखा गया।

इसमें “भक्ति” को सरल बनाने का नाम देकर अंधविश्वास और कर्मकांड का विस्तार हुआ।

3. राजनीतिक धर्म

राजाओं और पंडितों ने मिलकर इसे प्रचलित किया।

कथा और कर्मकांड से लोग भावनात्मक रूप से जुड़ें, ताकि सत्ता और पुरोहित वर्ग को समर्थन मिले।

इसलिए यह एक प्रकार का राजनीतिक–सामाजिक धर्म बन गया।

✧ परिणाम ✧

👉 यही कारण है कि आज का “हिंदू धर्म” (जो वास्तव में पुराण–आधारित है)
सनातन धर्म की मूल आत्मा से दूर हो गया।

सनातन धर्म = आत्मा, सत्य, ब्रह्म, ध्यान।

पुराण धर्म = चमत्कार, पाखंड, पंडितवाद, कर्मकांड।

यानी
पुराण धर्म = पंडित–पुरोहित की देन है,
सनातन धर्म = शुद्ध आत्मिक खोज है।

पुराण किसने लिखे? ✧

१. सामान्य परंपरा का दावा

सभी पुराणों का श्रेय “वेदव्यास” को दिया गया।

कहा गया कि व्यास ने १८ महापुराण और १८ उपपुराण लिखे।

परंतु इतिहास–शास्त्र के अनुसार, यह असंभव है कि एक ही व्यक्ति ने ये सब रचे हों।

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२. वास्तविक स्थिति

पुराण सैकड़ों सालों में, अलग-अलग लेखकों और परंपराओं द्वारा लिखे गए।

ये ४थी शताब्दी ईसा-पूर्व से लेकर १५वीं शताब्दी ईस्वी तक बनते रहे।

यानी: पुराण एक सतत कथाओं और लोकमानस की बुनाई है, जिन्हें बाद में ग्रंथ का रूप दिया गया।

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३. क्यों बनाए गए पुराण?

वेद–उपनिषद दार्शनिक और कठिन थे, आम जनता के लिए जटिल।

इसलिए कहानियाँ, अवतार–कथाएँ, मंदिर–पूजा, दान–व्रत आदि को गढ़ा गया, ताकि साधारण लोग भी धर्म से जुड़ सकें।

राजा–महाराजा और पंडितों ने इनका उपयोग राजनीति, नियंत्रण और भक्तिभाव के लिए किया।

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४. आज का धर्म पुराण-आधारित क्यों है?

क्योंकि कथा और कहानी सरल है, दार्शनिक विचार कठिन।

लोग सुनना पसंद करते हैं “राम–कृष्ण की लीलाएँ, चमत्कार, दान–पुण्य की महिमा।”

इसलिए आज का “हिंदू धर्म” = ९०% पुराण + १०% वेद/गीता/उपनिषद।

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५. निष्कर्ष

वेद–उपनिषद = आत्मज्ञान और दर्शन।

गीता = भक्ति, ज्ञान और कर्म का संतुलन।

रामायण–महाभारत = आदर्श जीवन की गाथाएँ।

पुराण = कथा, चमत्कार, कर्मकांड, मंदिर–व्यवस्था।

👉 यानी: पुराण किसी एक “लेखक” की रचना नहीं हैं।
वे लोक–कथाओं और पंडित–परंपरा की जोड़–घटाना हैं, जिनके आधार पर आज का लोकप्रिय हिंदू धर्म खड़ा है।

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