“कबीर कुत्ता राम का,
मुतिया मेरा नाऊँ।
गलै राम की जेवड़ी,
जित खैंचे तित जाऊँ॥”
कबीर कहते हैं कि मैं तो राम का कुत्ता हूँ, और नाम मेरा मुतिया है। मेरे गले में राम की ज़ंजीर पड़ी हुई है, मैं उधर ही चला जाता हूँ जिधर वह ले जाता है। प्रेम के ऐसे बंधन में मौज-ही-मौज है।
- Umakant