कभी लगता है शोर हू मैं....
कभी लगता है मौन हू मैं ,,,
ये समझ नही आ रहा आखिर कौन हूं मैं..?
कभी लगता है मुस्कुराहट हूं...
मैं कभी लगता है घबराहट हूं मैं खुद को रोज तलाशू आखिर कौन हूं मैं....
कभी लगता है मंजिल को पाने की राह हूं मै ...
कभी लगता है आसमान को छूने की चाह हूं ...मैं जिंदगी के सफर में ये नही समझ आ रहा आखिर कौन हूं मैं...!!
–निर्भय शुक्ला....