कभी-कभी किताबें सिर्फ़ कहानियाँ नहीं, एहसास बन जाती हैं। “काठगोदाम की गर्मियाँ” ऐसी ही एक कहानी है — जिसमें पहाड़ों की ठंडी हवा, चाय की खुशबू और अनकही भावनाएँ पन्नों में कैद हैं।
“हर जगह की एक अलग धड़कन होती है… दिल्ली की तेज़, और काठगोदाम की धीमी।”
इस एक लाइन में ही कहानी की रूह है — एक शहर की तेज़ रफ्तार और पहाड़ों की शांति का मिलन।
कर्निका और रोहन की मुलाकातें मैग्गी प्वाइंट से लेकर शादी की रौनक तक, और फिर अनकहे रिश्तों की गहराई तक जाती हैं।
“कभी-कभी, किसी के सामने चुप रहना… बहुत कुछ कह जाना होता है।”
यह लाइन उन पलों की गवाही देती है जहाँ शब्दों की जगह सिर्फ़ आंखें बोलती हैं।
पढ़ते-पढ़ते आप महसूस करेंगे कि रिश्ते कितने खूबसूरती से समय और खामोशी के धागों में बुने जाते हैं।
“कुछ रिश्ते नाम से नहीं, वक़्त और खामोशी से बनते हैं।”
ये पंक्ति हर उस एहसास को पकड़ती है, जिसे हम कह नहीं पाते।
और अंत में, जब कहानी अपने चरम पर पहुँचती है, तो वो दो कप चाय और वो एक खामोशी दिल को छू जाती है।
“दो कप चाय, दो दिल, और एक कहानी… जो वहीं पूरी होती है, जहाँ शुरू हुई थी।”
अगर आप पहाड़ों की ठंडी हवा में डूबी हुई एक सच्ची, दिल छूने वाली कहानी पढ़ना चाहते हैं, तो “काठगोदाम की गर्मियाँ” आपको वही एहसास देगी — जैसे किसी पुरानी याद ने फिर से आपका हाथ पकड़ लिया हो।