उसने सपने सजाए थे अपने ख्वाब के, ना की कहानी अखबार के
जब वो पढ़ने आयी होगी, कुछ उम्मीदें और सपने साथ लाई होगी
अब तो उसके ख्वाब पन्नों में सिमट गए, सपने थे माँ -बाप के वो भी अधूरे रह गए
कलम की स्याही सूखती नहीं, उससे पहले लिखने को हो जाते मजबूर, कैसे शब्दों में बया करे उस माँ-बाप का जो हो गए अपने बच्चे से दूर
माता-पिता ने सपने देखे थे उसके कामयाबी के, लेकिन वक्त ने मौत का तमाशा दिखाया है, उन्हें खूब रुलाया हैबह गए सारे आसुओं में जब सुनी कहानी मौत की अखबारों में