“ज़िन्दगी राख में मिल जायेगी एक दिन, फिर लाख का ख़ाक होना भी लाज़मी है।”
— धीरेन्द्र सिंह बिष्ट, लेखक : अग्निपथ 🔥📖
कभी सोचा है कि जिस ज़िंदगी को हम पल-पल सहेजते हैं, वो एक दिन बस एक मुट्ठी राख बन जाएगी?
फिर चाहे दौलत हो, शौहरत हो या नाम — सब धुएँ में उड़ जाएगा।
तो क्यों न कुछ ऐसा जिया जाए, जो ख़ाक होने से पहले आग बन जाए?
‘अग्निपथ’ एक ऐसी ही यात्रा है — संघर्ष से आत्मबल तक, अंधेरे से उजाले तक।
यह किताब सिर्फ़ पढ़ने के लिए नहीं, महसूस करने के लिए है।
हर पन्ना आपको अपनी किसी ना किसी कहानी से जोड़ देगा।
हर शब्द आपको झकझोर देगा — सोचने पर मजबूर कर देगा कि
आप अपनी ज़िंदगी के हीरो हैं, कोई और नहीं।
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