आज एक ऐसा सिलसिला शुरु हुआ जैसे एक पन्ने पर एक कविता लिख गई है,
जिसे मैं पढ़ने बैठी थी,
मेरी नजर गई उस पंक्ति पर जिसमें जिंदगी ,जीने का सफर लिख गई थी, ना कोई शिकायत थी ना कोई सवाल था,
बस एक खामोशी थी जो बहुत कुछ कह गई थी,
मै बैठी थी खामोश परिंदों की तरह,
हवाएं ऐसे चल रही थी मानो जैसे वो मुझे दुआ दे रही हो,
आज एक ऐसा सिलसिला शुरु हुआ जैसे एक पन्ने पर एक कविता लिख गई है ।
- Sunita bhardwaj