( पैमाना )
मजबूरी मे पीता हूं, जनाब, कुछ कहना है।
जिम्मेदारी भी सजा है, जनाब, यही रहना है।
बहुत आपनो ने, मेरा लहू निचौड़ा यही कहकर,
जन्मों का हिसाब है, कुछ तो देना है।
खबर बन गये,कब हम, पता चला नहीं,
और कितना मेरे यारो, आपने और लेना है।
मजबूरी मे पीता हूं , जनाब कुछ कहना है। नीरज शर्मा