जब दस्तक दी प्रेम ने
तुमने नहीं खोले दिल के द्वार।
जब उसने पुकारा
तुम डूबे रहे दुनिया के शोर में।
जिस-जिस वरक़ में वह था
तुमने पलट दिए वही-वही पन्ने।
जब वह स्वयं आया सामने
तो तुमने फेर लिया उससे मुँह ।
वह नहीं रिझा पाया तुम्हें
किसी भी पैरहन में ।
वह नहीं कर पाया तुमसे संवाद
किसी भी भाषा में,
क्योंकि तुम्हारे पास पहले से मौजूद थीं
उसकी सच्ची-झूठी, स्वयं बनाई, कुछ औरों द्वारा बताई गईं अनेकानेक छवियाँ,
तभी वह चला गया और तुम्हें एहसास भी नहीं हुआ
क्योंकि तुम हो चुके हो रिक्तता के आदी
तुम कैसे नहीं देख पाए-
उसमें स्वयं को
तुमने खो दिया
उसे नहीं,
स्वयं को ।।
पुष्प सैनी 'पुष्प'✍🏻