तस्वीर-ए-ख़्याल
मौसम सा हो गया हूँ मैं,
अब तेरी फ़िक्र करना छोड़ दी ज़ालिम… तेरी अदा जो यूँ दिल पर लिख दी।
किसी ख़ूबसूरती की मिसाल को
पलकों की पनाह में सजा दिया मैंने।
कहीं से एक आहट आई थी —
लग रहा था जैसे शान की कोई रौशनी छू गई हो।
जादूगरी है तेरा यूँ शर्माना,
उफ़्फ़… और तेरा उलझ जाना भी इक कहानी है।
शम्मा बुझ गई, पर तू फिर भी जलती रही,
क्या रौशनी है तू — जो बुझ के भी चमकती है।
और दूर...शायद कहीं उसी गली में,
तेरा ही बसेरा है — जहाँ मेरा दिल हर रोज़ भटक आता है।
_Mohiniwrites