मैं और मेरे अह्सास
जहां भी हो बस चले आओ की आजकल
नजारे उदास रह्ते हैं l
गुनगुनाती नशीली पुकार के बिना फ़साने उदास रह्ते हैं l
जिंदगी खामखा उलझा दी बेकार की बातों में देखो तो l
अभी आएं हो अभी जाने की ज़िद से बहारें उदास रह्ते हैं l
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह