भारत में दो ही मौसम चलते हैं – एक गर्मी का, दूसरा चुनाव का।
गर्मी में बिजली जाती है, चुनाव में याद्दाश्त।
नेता आते हैं, वादे करते हैं, चले जाते हैं – जैसे बारिश से पहले के बादल।
कभी कहते हैं – हम भ्रष्टाचार मिटा देंगे!
फिर धीरे से जोड़ देते हैं – "ताकि हम कर सके।"
जनता पूछे – ‘कब मिलेगा रोजगार?’
तो जवाब आता है – ‘जब हमारे पिछले वादे पूरे होंगे।’
जो आज तक तो कभी पूरे हुए नहीं।
चुनाव से पहले नेता गरीब की झोपड़ी में खाना खाते हैं,
और चुनाव के बाद गरीब को।
नेताओं का भाषण शुरू होता है – ‘मेरे प्यारे देशवासियों’
और खत्म होता है – ‘हमें वोट ज़रूर दीजिए।’
बीच में अगर कुछ समझ आया हो, तो आप वाकई काबिल हैं।