मैं और मेरे अह्सास
हुस्न को दूर जाता देख जान निकल जाती हैं l
खामोशी से दिल की भावनाएँ मचल जाती हैं ll
प्यारी नजर को तरसते और तड़पता देखकर l
नजर में रहम-ओ-करम देख पिघल जाती हैं ll
दिन रात सुबह शाम यूहीं बीत जाते दर्द में l
जरा हंस दे तो भी किस्मत बदल जाती हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह