डूब जाये जो क़िस्मत का तारा
कोई होता नहीं फिर सहारा
डूब जाये जो क़िस्मत का तारा
कोई होता नहीं फिर सहारा
ओ चाँद सूरज हो रोशन हमें क्या
ओ कोई फुलों का गुलशन हमें क्या
एक समाधि है जीवन हमारा
कोई होता नहीं फिर हमारा
डूब जाये जो क़िस्मत का तारा
कोई होता नहीं फिर हमारा
डूब जाये…
ऐसा उलझा है काँटों में दामन
अपनी परछाई है अपनी दुश्मन
लाख तूफ़ान है और एक बेचारा
डूब जाये जो क़िस्मत का तारा
कोई होता नहीं सहारा
डूब जाये
ओ रह गई आरजू नज़र में
ओ बस फसी अपनी नैया भँवर में
जब नज़र आ रहा था किनारा
कोई होता नहीं फिर हमारा
डूब जाये जो क़िस्मत का तारा
कोई होता नहीं फिर सहारा
डूब जाये…
🥵
- Umakant