ग़र कदाचित ऐसा हो जाए
तो फिर तुम क्या करोगी
तुझे मुझसे मुझसा इश्क हो जाए
तो फिर तुम क्या करोगी
क्या करोगी ग़र मुझको भी
तुझसा इश्क हो जाए
फ़ज़ीलत पहला काम हो
दूजा इश्क हो जाए |
क्या लड़ोगी तुम भी मिलने को
जैसे मैं तुझसे लड़ता हूं
साथ रहने के लिए जो
तुझसे मैं झगड़ता हूं
उल्फत हाथों में लिए
जो अंगारों पर चल रहा
काश कभी समझ जाए
जो मेरे मन में चल रहा ||