जो दीवारों से लड़ती आई,
वो दरबाजों पर लड़ती है।
शहर में सन्नाटा पसरा,
लड़की यार अकेले चलती है !!
पनघट सारे टूट गए,
प्यास बुझा दी बिस्लेरी बोतल ने ।
जहर कहाँ पर मिलता है,
खोज लिया इस औरत ने !!
मुश्किल में मदद मांगना जायज है,
पर इसके नाजायज खर्चे हैं।
मजबूरी में रिस्वत लेता हूँ,
बेचारे पति के निजी तजुर्वे हैं,!!
औरत सन्यासी जोगन है,
दाग न इस पर कोई लगता है।
बदनाम पुरुष जमाने में देखा,
औरत के रूप में हर कोई ढलता है !।
कवि अवध कुमार मिश्र
🙏🏻
- Umakant