ये किस के आंसुओं ने उस नक़्श को मिटाया
जो मेरे लोहे-ए-दिल पर तू ने कभी बनाया
था दिल जब उस पर पे माइल था शौक़ सख़्त मुश्किल
तर्गींब ने उसे भी आसान कर दिंखाया
इक गर्द-बाद में तू ओझल हुआ नज़र से
इस दश्त-ए-समर से जुड़ खाक कुंछ न पाया
ऐ चोब-ए-बे-खुश्क-ऐ-सहरा वो बाद-ए-शौक़ क्या थी
मेरी तरह बहरना जिस। ने तुझे बनाया
फिर हम है नीम-शब है अंदेशा-ए-अबस है
वो वाहिमा कि जिस से तेरा यक़ीन आया
फहमीदा रियाज
- Umakant