✤┈SuNo ┤_★_🦋
ज़ख़्मी शायर की रुबा'ई होकर भी
उसमें ठहराव नहीं देखा"
वो निर्झर नदी सी बहती थी कैसे मैं
उसे रोक पाता,
वादे कसमों की नींव पर रिश्ते बहुत
कम ही चलते हैं"
जब मन में ठान लिया जाना है फिर
कहां देर तक रुकते हैं,
कब तक आँखें मूंदे मैं रहूँ एक दिन
तो सच स्वीकारना ही है"
झूठे प्रेम ने मुझसे सुख जीवन का
सारा छीना है,
लबों पर हँसी फ़िर से लौटे आंगन
में रौनक फिर आए"
इतना यदि मुझको पाना है तो फिर
सच को तो स्वीकारना है,
मन ही मन कुंठित होता रहूँ आँखों
में अंगारे मैं भरूं"
प्रतिशोध भी लूँ तो किस से जिसे
प्रेम आज भी करता हूँ,
बेहतर है उसके फैसले को दिल से
मैं स्वीकार लूँ"
वो अपने जीवन में खुश हो मैं भी
नई शुरूआत करूँ...🔥
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@LoVe_AaShiQ_SinGh
⎪⎨➛•ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी°☜⎬⎪
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