ये आँखों की शरारत है या नज़ाकत है कोई, ग़ज़ब खूबसूरती उसकी मुझे सता रही है भीड़ में,
उसकी हल्की सी मुस्कान की इबादत है कोई, वो मुझसे ही मेरा वजूद मिटा रही है भीड़ में,
कैसे बयाँ करूँ उसका रूप मैं आइना नहीं कोई, मेरी रूह कि कशमकश मुझे लुटा रही है भीड़ में,
जज्बातों की लहर और मेरे सब्र में जंग है कहीं, ये फ़ैसले से बेपरवाह हिम्मत जुटा रही है भीड़ में,
बेसब्र हो चली है अब तो साँसें भी जिस्म में कहीं, मेरे क़दम सजदे में हैं वो ठोकरें दिला रही है भीड़ में,
खुद को रोकने की हर कोशिश अब बेकार हुई, पत्थर से टकराती लहर हूँ वो बिखरा रही है भीड़ में,
मैं बन पतंगा चला हूँ खुद को मिटाने उसकी ओर, उसमें समाऊँ मैं और वो मुझमें समा रही है भीड़ में,
मैंने मोम बन खुद को उसका प्रतिरूप बना दिया, वो अग्नि की ज्वाला बन धुएँ सा उड़ा रही है भीड़ में,
सब सपने यूँ टकरा कर हवाओं में बिखर गये हैं, जैसे रूह शरीर छोड़ ख़ाली जिस्म दिखा रही है भीड़ में.।।
भीड़ से अलग है रोहित की दुनिया
कोई साथ नही देता इसलिए अलग है रोहित की दुनिया