*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*जगत,मंच,कठपुतली,जीवन,खिलौना*
रहा *जगत* में सत्य ही, हुआ झूठ का अंत।
वेद पुराणों में लिखा, कहते ऋषि मुनि संत।।
जीवन अद्भुत *मंच* है, भिन्न-भिन्न हैं पात्र।
अभिनय अपना कर रहे, बने सभी हैं छात्र।।
*कठपुतली* मानव हुआ, डोर ईश के हाथ।
कब रूठे सँग छोड़ दे, यह नश्वर तन साथ।।
*जीवन* तक ही साथ है, बँधी स्वाँस की डोर।
जितना जीभर जी सको, होती नित है भोर।।
मन बहलाने के लिए, दिया *खिलौना* साथ।
टूटे फिर हम रो दिए, बैठ पकड़ कर माथ।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*