Hindi Quote in Poem by Manoj kumar shukla

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*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*जगत,मंच,कठपुतली,जीवन,खिलौना*

रहा *जगत* में सत्य ही, हुआ झूठ का अंत।
वेद पुराणों में लिखा, कहते ऋषि मुनि संत।।

जीवन अद्भुत *मंच* है, भिन्न-भिन्न हैं पात्र।
अभिनय अपना कर रहे, बने सभी हैं छात्र।।

*कठपुतली* मानव हुआ, डोर ईश के हाथ।
कब रूठे सँग छोड़ दे, यह नश्वर तन साथ।।

*जीवन* तक ही साथ है, बँधी स्वाँस की डोर।
जितना जीभर जी सको, होती नित है भोर।।

मन बहलाने के लिए, दिया *खिलौना* साथ।
टूटे फिर हम रो दिए, बैठ पकड़ कर माथ।।

मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*

Hindi Poem by Manoj kumar shukla : 111958157
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