Hindi Quote in Shayri by Umakant

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“बुझ गई आग थी,
दाग़ जलता रहा”
💕
तूने जो ना कहा,
मैं वो सुनता रहा
ख़्वाह-मख़ाह,
बेवजह ख़्वाब बुनता रहा

जाने किसकी हमें
लग गई है नज़र


इस शहर में ना
अपना ठिकाना रहा
दूर चाहत से मैं
अपनी चलता रहा
ख़्वाह-मख़ाह,
बेवजह ख़्वाब बुनता रहा


दर्द पहले से है ज़्यादा
ख़ुद से फिर ये किया वादा
ख़ामोश नज़रें रहें बेज़ुबाँ
बातों में पहले सी बातें हैं
बोलो तो लब थरथराते हैं
राज़ ये दिल का
ना हो बयाँ
हो गया कि असर
कोई हम पे नहीं?


हम सफ़र में तो हैं,
हमसफ़र है नहीं
दूर जाता रहा,
पास आता रहा
ख़्वाह-मख़ाह,
बेवजह ख़्वाब
बुनता रहा
दूर चाहत से
मैं अपनी चलता रहा
बुझ गई आग थी,
दाग़ जलता रहा”
💕
❤️
- Umakant

Hindi Shayri by Umakant : 111957717
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