वो निर्मोही, मोह ना जाने जिनका मोह करे मन रे, तू काहे ना धीरे धरे?
क्या जीवन की चढ़ती-ढलती धूप को किस ने बांधा रंग पे किस ने पहर डाले रूप को किस ने बांधा काहे ये जतन करे?
यार रे, भी काहे ना धीरे धरे?
उताना ही उपकार समझ कोई जितना साथ निभा दे जन्म-मरण का मेल है सपना ये सपना बिसरा दे कोई ना संग मारे मन रे, भी काहे ना धीरे धरे?
वो निर्मोही, मोह ना जाने
🙏🏻
- Umakant