“प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरूँ,
प्रेमी मिलै न कोइ।
प्रेमी कूँ प्रेमी मिलै तब,
सब विष अमृत होइ॥
परमात्मा के प्रेमी को मैं खोजता घूम रहा हूँ परंतु कोई भी प्रेमी नहीं मिलता है।
यदि ईश्वर-प्रेमी को दूसरा ईश्वर-प्रेमी मिल जाता है तो
विषय-वासना रूपी विष अमृत में परिणत हो जाता है।
🙏🏻
- Umakant