उन्होंने सरे आम मेरे ज़ज़्बातों का मज़ाक उड़ा दिया
सवाल किया तो अहंकारी बता दिया
सोचा रिश्ते की डोर बचा लूं
तो डोर को हाथों से छीन लिया
रोज़ रोज़ के मज़ाक से परेशान होकर
सोचा जिंदगी ख़त्म करलूँ
तो मौत ने आने से मना कर दिया
बातो को संजोने वाली, घर को घर बनाने वाली
अब बिखरे रिस्तो को एक एक कर के समेट रही हैँ
दिल खाली सा हैँ
लब खामोश हैँ
शायद खामोशियाँ उन्हें अच्छी लगने लगी
खैर सोचा उन्हें अपनी सोच बता दू
तो मेरी सोच को गलत कह कर मुझे खामोश कर दिया
चल कोई नहीं,तू सही मैं गलत
अब रिस्तो मे जो खामोशियाँ आ गयी
- SARWAT FATMI