ज़िंदगी से बडी सजा ही नहीं
और क्या जुर्म है पता ही नही
इतने हिस्से में बट गया हूँ मैं
मेरे हिस्से में कुछ बचा नहीं
ज़िंदगी मौत तेरी मंज़िल है
दुसरा कोई रास्ता ही नहीं
सच घटे या बढ़े तो सच न रहे
झूट की कोई इंतिहा नहीं
ज़िंदगी अब बता कहाँ जाएँ
ज़हर बाज़ार में मिला ही नहीं
जिसके कारन फसाद होते है
उस का कोई अता-पता ही वहीं
कैसे अवतार कैसे पैगमबर
ऐसा लगता है अब ख़ुदा ही नहीं
चाहे सोने के फ़्लेम में जड दो
आईना झूट बोलता ही नहीं
अपनीज़िंदगी से बडी सजा ही नहीं
और क्या जुर्म है पता ही नही
इतने हिस्से में बट गया हूँ मैं
मेरे हिस्से में कुछ बचा नहीं
ज़िंदगी मौत तेरी मंज़िल है
दुसरा कोई रास्ता ही नहीं
सच घटे या बढ़े तो सच न रहे
झूट की कोई इंतिहा नहीं
ज़िंदगी अब बता कहाँ जाएँ
ज़हर बाज़ार में मिला ही नहीं
जिसके कारन फसाद होते है
उस का कोई अता- पता वहीं
कैसे अवतार कैसे पैगमबर
ऐसा लगता है अब ख़ुदा ही नहीं
चाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो
आईना झूट बोलता ही नहीं
अपनी रचनाओं में वो ज़िंदा है
‘नूर’ संसार से गया ही नहीं
…..कृष्ण बिहारी नूर
रचनाओं में वो जिंदा है
‘नूर’ संसार से गया ही नहीं
….कृष्ण बिहारी नूर
- Umakant